हीरे की परख जौहरी ही जानता है
ऐसा हुआ, सूफी फकीर हुआ झुन्नून एक आदमी उसके पास आया और उसने झुन्नुन को कहा कि यह सब बकवास है। मैं कई सूफियों के पास गया, यह सब बातचीत है, कुछ नहीं पाया। वह फलां सूफी है, धोखेबाज है। और फलां सूफी है, उसके आचरण का कोई भरोसा नहीं। और एक सूफी है, वह बातचीत तो ऊंची करता है, लेकिन अनुभव उसे बिलकुल नहीं हुआ।
झुन्नून ने कहा, बात पीछे करेंगे, जरा मुझे जरूरत है एक काम की, तुम थोड़ा—सा काम कर दो। यह एक पत्थर मेरे पास है, तुम चले जाओ बाजार में, सोने और चांदी की दुकानों पर, अगर कोई इसे एक सोने के सिक्के में खरीद ले तो तुम बेच आओ।
वह आदमी गया। बाजार पास ही था। सोने—चांदी की दुकानों पर गया, कोई उसे एक सोने के सिक्के में लेने को राजी नहीं था। ज्यादा से ज्यादा एक चांदी का सिक्का कोई देने को राजी हुआ था—वह भी बड़े पसोपेश में! वह आदमी लौट आया। उसने कहा कि यह पत्थर बिलकुल बेकार है! सोने की बात तो छोड़ो, उस वहम में मत रहो, चांदी का एक सिक्का मिलता है। और वह भी आदमी संदिग्ध है, वह भी पक्का नहीं है कि ले या न ले।...क्या करना है?
झुन्नुन ने कहा कि जब तुम जौहरी की दुकान पर चले जाओ। और बेचना मत पत्थर को, सिर्फ दाम पूछकर आना। वह गया। जौहरी एक हजार सोने के सिक्के देने को तैयार था। जब वह बेचने को राजी न हुआ तो वह दस हजार सोने के सिक्के देने को तैयार हो गया। तब भी वह बेचने को राजी न हुआ तो जौहरी ने कहा, तुम कितना चाहते हो, तुम बोलो? लेकिन पत्थर वापिस न ले जाने देंगे? उसने कहा, बेचने को कहा ही हनीं उसने, जिसका यह पत्थर है; सिर्फ दाम पूछने को कहा है।
वापिस लौटकर आया। कहने लगा, बद हो गई! अच्छा हुआ कि मैं बेच नहीं आया, नहीं तो एक चांदी का सिक्का मिलता। दस हजार तो वह देने को तैयार है और पूछता है, तुम बोलो!
फकीर ने कहा, पत्थर बेचना नहीं है, सिर्फ तुम्हें इसलिए भेजा था कि तुम पता लगा लो। हीरे की पहचान के लिए जौहरी होना जरूरी है। तुम जौहरी हो कि सूफी की पहचान कर सको?
चांदी—सोने के दुकानदार को हीरे की क्या पहचान। फिर भी थोड़ा बहुत खयाल होगा कि पत्थर रंगीन है, थोड़ा बहुत चमकदार है, तो चलो खरीद लो, शायद किसी काम आ जाए। और कहीं तुम शाक—सब्जी की दुकान पर चले जाओ इसे बेचने, तो यह कहेगा: दो पैसा में दे जाओ, शाक—सब्जी तौलने के काम आ जाएगा।
उसने कहा, पत्थर वापिस रख दो, जौहरी चाहिए हीरे की पहचान के लिए।
कौन पहचानेगा सूफी को? कौन पहचानेगा संत को, साधु को? हीरा तुम्हें दिया नहीं जा सकता। तुम पहचानोगे नहीं, तुम गंवा दोगे—या बच्चों को खेलने को दे दोगे—
आज जो कोहिनूर है, वह गोलकोंडा में एक गरीब आदमी के घर में बच्चों का खिलौना था, उसको खेत में मिल गया था, और बच्चे उससे खेलते थे।
हीरे की पहचान जौहरी को: ज्ञान की पहचान ज्ञानी को। हीरा तो तुम्हें दिया नहीं जा सकता। दे भी दें तो तुम उसका दुरुपयोग करोगे। इसलिए कबीर कहते हैं:
हीरा पायो गांठ गठियाओ, बार बार क्यों खोले।
और खुद को तो कोई संदेह नहीं है, क्योंकि वह जो अनुभूति है, संदिग्ध है
ओशो
सुनो भाई साधो
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