कितनी अच्छी सुबह है!

लाओत्से रोज घूमने जाता है।एक मित्र उसके साथ जाता है।
वे दो घंटे तक घूमते हैं पहाड़ों पर, फिर लौट आते हैं।
फिर एक मेहमान आया हुआ है।
तो वह मित्र उसे लाता है और कहता है कि हमारे मेहमान हैं, आज ये भी चलेंगे। वे दोनों चुप हैं।
लाओत्से चुप है, साथी चुप है, वह मेहमान भी चुप है।
रास्ते में जब सूरज ऊगा तब वह इतना ही कहता है मेहमान कि कितनी अच्छी सुबह है!
तब लाओत्से बहुत गुस्से से उस अपने मित्र की तरफ देखता है जो इस मेहमान को ले आया है।
वह मित्र भी घबड़ा जाता है, वह मेहमान तो और भी घबड़ा जाता है कि ऐसी भी कोई मैंने बुरी बात भी नहीं कह दी।
और घंटा भर हो गया चुप रहते, सिर्फ इतना ही कहा है कि कितनी अच्छी सुबह है।
फिर वे लौट आते हैं, घंटा और बीत जाता है, दरवाजे पर लाओत्से उस मित्र से कहता है, इस आदमी को दुबारा मत लाना।
यह बहुत बकवासी मालूम होता है।
वह मेहमान कहता है कि मैंने कोई बकवास नहीं की, दो घंटे में सिर्फ इतना कहा कि कितनी अच्छी सुबह है। लाओत्से कहता है, वह हमको भी दिखाई पड़ रही थी।
वह निपट बकवास थी।
सुबह हमको भी दिखाई पड़ रही थी।
जो बात सभी को दिखाई पड़ रही थी, उसको कहने की क्या जरूरत है!
और जो बात नहीं कहनी, तुम वह कह सकते हो, तुम आदमी ठीक नहीं हो।
तुम कल से मत आना।
अब यह बात जरा सोचने जैसी है।
असल में, जब आप सुबह देखकर कहते हैं कि कितनी अच्छी सुबह है, तब सच में आपको सुबह से कोई मतलब नहीं होता। आप सिर्फ एक चर्चा शुरू करना चाहते हैं।
सुबह तो हम सबको दिखाई पड़ रही है। सुबह सुंदर है तो चुप रहिए।
नहीं, सिर्फ आदमी खूंटी खोजता है।
तो वह जो पूरा कासिकेंस है, लाओत्से पूरा पकड़ लेता है।
वह कहता है, यह आदमी बकवासी है। इसने शुरुआत की थी, वह तो हम जरा ठीक आदमी नहीं थे, नहीं तो यह शुरू हो गया था।
इसने ट्रेन तो चला दी थी।
वह तो दो आदमियों ने सहयोग नहीं दिया इसलिए यह बेचारा चुप रह गया।
इसने शुरुआत तो कर दी थी, इसने खूंटी गाड़ दी थी, अभी यह और सामान भी गाड़ता उसके ऊपर।
यह आदमी बकवासी है।
अब यह इतनी सी बात कि सुबह सुंदर है, एक बकवासी आदमी के चित्त की सबूत हो सकती है।
इससे ज्यादा उसने कुछ कहा ही नहीं। हमको भी लगता है कि लाओत्से ज्यादती कर रहा है।
लेकिन मुझे नहीं लगता।
वह ठीक ही कह रहा है।
वह आदमी पकड़ लिया उसने।
क्योंकि ताओ जो है उसकी अपनी बुद्धिमत्ता है, वह दर्पण की तरह है।
वह चीजें जैसी हैं वैसी दिख जाती हैं। उसने पकड़ ली इस आदमी की तरकीब कि यह आदमी घंटे भर से बेचैन था, इसने कई तरकीबें लगाई होंगी, लेकिन दो आदमी बिलकुल चुप थे, वे कुछ बोल ही नहीं रहे थे!
इसने कहा, क्या करें, क्या न करें!
इसने कहा सुबह हो गई, अब इसने कहा कि सुबह बहुत सुंदर है।
अब इसने चाहा था कि इनमें से कोई कुछ तो कहेगा कि ही, सुंदर है।
अब इसमें तो कोई इनकार नहीं करेगा। तो बात शुरू हो जाएगी।
फिर जो बात शुरू हो जाती है उसका कोई अंत नहीं है।
तो लाओत्से ने कहा, यह है बकवासी, इसको तुम कल से लाना ही मत।
इसने बीज तो बो दिया था, फसल तो हमने बचाई।
ओशो

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