तुम शांत हो जाओगे, मैं चमत्कार दिखा दूंगा।
ऐसा हुआ कि एक मुसलमान फकीर नानक के पास आया और उसने कहा कि मैंने सुना है कि तुम चाहो तो क्षण में मुझे राख कर दो और तुम चाहो तो क्षण में मुझे बना दो। यह चमत्कार है; मुझे भरोसा नहीं आता। पर आदमी ईमानदार था,मुमुक्षु था; ऐसे ही कुतूहल से नहीं आ गया था। साधक था, जो पूछा था, बड़ी अभीप्सा से पूछा था।
नानक ने कहा तो फिर आंख बंद कर लो और शांत हो कर बैठ जाओ, तो जो तुम चाहते हो, वह मैं करके ही दिखा दूं। वह फकीर आंख बंद करके शांत हो कर बैठ गया।
अगर मुमुक्षु न होता तो भयभीत हो जाता। क्योंकि जो पूछा था, खतरनाक पूछा था कि राख कर दो, मिटा दो,फिर बना दो। प्रलय और सृष्टि तुम्हारे हाथ में है, ऐसा मैंने सुना है।
सुबह का वक्त--ऐसी ही सुबह रही होगी। एक गांव के बाहर एक वृक्ष के नीचे, एक कुएं के पास नानक बैठे थे। उनके भक्त मरदाना और बाला मौजूद थे। वे भी थोड़े हैरान हुए कि ऐसा तो नानक ने कभी किसी से कहा नहीं! और अब क्या होगा! वे भी सजग हो गए। उस क्षण जैसे आस-पास वृक्ष भी सजग हो गए होंगे। पत्थर भी सजग हो गए होंगे। क्योंकि नानक ने कहा, बैठ जाओ, आंख बंद करो, शांत हो जाओ। जैसे ही तुम शांत हो जाओगे, मैं चमत्कार दिखा दूंगा।
वह फकीर शांत हो कर बैठ गया। बड़ी आस्था का आदमी रहा होगा। वह भीतर बिलकुल शून्य हो गया। नानक ने उसके सिर पर हाथ रखा और ओंकार की ध्वनि की। और कहानी कहती है कि वह आदमी राख हो गया। फिर नानक ने ओंकार की ध्वनि की। और कहानी कहती है, वह आदमी फिर निर्मित हो गया।
अगर कहानी को ऊपर से पकड़ोगे तो चूक जाओगे। लेकिन भीतर यह घटना घटी। जब वह सब भांति शांत हो गया और नानक ने ओंकार की ध्वनि की, श्रवण को उपलब्ध हुआ,भीतर का वार्तालाप टूट गया। सिर्फ ओंकार की ध्वनि गूंजी। उस ध्वनि के गूंजने के बाद प्रलय की स्थिति भीतर अपने आप हो जाती है। सब खो गया--सब संसार, सब सीमाएं--राख हो गया, ना-कुछ हो गया। भीतर कोई भी न बचा, खोजे से भी कोई न मिला। कोई था ही नहीं, घर सूना था। फिर नानक ने ओंकार की ध्वनि की। वह आदमी वापस लौटा। उसने आंखेंखोलीं। उसने चरणों में, पैरों में सिर रखा और कहा कि मैं तो सोचता था, यह असंभव है। लेकिन यह करके दिखा दिया!
कहानी को मानने वाले इसे न समझ पाएंगे। वे तो समझते हैं कि वह आदमी राख हो गया, फिर राख से नानक ने उसको बना दिया। ये सब नासमझी की बातें हैं। तब तुम समझे नहीं, चूक गए। पर भीतर प्रलय और सृष्टि की घटना घटती है।
लेकिन वह फकीर सुनने में समर्थ था। जब कोई सुनने में समर्थ होता है तो तुम मुझे ही थोड़े सुनोगे! सुनने की कला आ गयी। मैं तो बहाना हूं, गुरु तो बहाना है। सुनने की कला आ गयी तो जब वृक्षों में हवाएं बहेंगी, तब भी तुम सुनोगे। और उस सन्नाटे में तुम्हें ओंकार का नाद सुनाई पड़ेगा; जीवन का जो मूल स्वर है, वह सुनाई पड़ेगा। पर्वत से पानी का झरना गिरेगा, उसके नाद को तुम सुनोगे। उस नाद में तुम पाओगे कि सभी शून्य में टिका है। नदियां उसी में बहती हैं, सागर उसी में लीन होते। तुम आंख बंद कर दोगे तो तुम अपनी ही हृदय की धड़कन सुनोगे; खून की गति की धीमी-धीमी आवाज सुनोगे। और तुम पाओगे, यह मैं नहीं हूं; मैं तो सुनने वाला हूं; मैं तो साक्षी हूं। फिर तुम्हें मृत्यु स्पर्श न कर पाएगी। जिसे सुनने की कला आ गयी, उसे कुछ भी जानने को बाकी न रहा।
एक ओंकार सतनाम -- प्रवचन--5
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