गंगा की धार में उलटे मत तैरो; गंगा की धार में साथ बहो।ओशो
मैंने सुना है, एक सर्कस में ऐसा हुआ। सिंहों को नचाने वाला अचानक हार्ट-फेल से मर गया। भर दुपहरी, ज्यादा समय नहीं,शाम होने का वक्त आ रहा है। सर्कस का विज्ञापन हो चुका है। क्या करें अब, क्या न करें! मैनेजर ने गांव भर में डुंडी पिटवाई कि है कोई हिम्मतवर जो कुछ सिंहों के साथ खेल कर सके?और देख कर चकित हुआ। आई एक महिला--सुंदर महिला!
उसने कहा, तू क्या कर सकती है? तू क्या कर पाएगी?
उसने कहा, मैं वह चमत्कार कर सकती हूं जो अभी तक किसी ने नहीं किया होगा। मैं जाकर घुटने के बल खड़ी हो जाऊंगी और तुम देखना, सिंह आकर अगर मेरा चुंबन न ले!
मैनेजर भी हैरान हुआ। चमत्कार उसने बहुत देखे थे; जिंदगी भर मैनेजरी की सर्कस की, एक से एक काम देखे थे, मगर यह काम उसने नहीं देखा था। उसने कहा, तू ठीक कह रही है?ठीक, तो जो तेरी मांग हो पूरी कर देंगे। आज का खेल अगर सफल हुआ तो तू जो तनख्वाह मांगेगी, कल से तेरी तनख्वाह तय हो जाएगी। और आज का तुझे जो चाहिए वह मांग ले।
उसने कहा, पीछे ले लेंगे। लेने की बात पीछे हो जाएगी, पहले खेल हो जाए।
गांव भर में खबर भी फैल गई। उस दिन बड़ी भीड़-भाड़ थी। क्योंकि लोगों ने देखा था हंटर मारते हुए आदमी को, शेरों को नचाते। लेकिन एक सुंदर स्त्री वहां जाकर घुटने टेक कर खड़ी हो जाएगी और सिंह उसका चुंबन लेगा! और यह हुआ। यह युवती आई। आकर घुटने टेक कर खड़ी हो गई। सिंह आया। सकता छा गया। लोगों की सांसें बंद हो गईं। लोगों ने तो समझा कि मारी गई बेचारी। हाथ में कोड़ा तक नहीं है। बचाव का कोई उपाय नहीं है। और मैनेजर ने दरवाजा भी बंद करवा दिया था कठघरे का, क्योंकि यह खतरनाक मामला है; नया मामला है, क्या हो इसका परिणाम! शेर कहीं बाहर आ जाए,कुछ से कुछ हो जाए। सिंह दहाड़ा। उसकी दहाड़ सुन कर क्या हालत हुई होगी! मगर युवती अडिग खड़ी रही। सिंह दहाड़ा,पास आया, फिर पूंछ हिलाने लगा। फिर आकर उसने स्त्री का चुंबन लिया। और वापस जाकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।
चमत्कार! मैनेजर ने घोषणा की कि दस हजार रुपये हम ईनाम देते हैं इस स्त्री को। अगर कोई मर्द यहां हो जो यह काम करके दिखा सकता हो तो उसके लिए हम बीस हजार देंगे।
मुल्ला नसरुद्दीन खड़ा हो गया। लोगों में और सकता छा गया कि यह बड़े मियां को क्या सूझा! ये किसी एक ताकतवर कुत्ते को भी न सम्हाल पाएं। अब तो और भी सन्नाटा छा गया। मुल्ला पहुंचा। मैनेजर ने कहा कि बड़े मियां, आप होश में हो?ज्यादा तो नहीं पी गए हो? क्या करने जा रहे हो? यह सिंह है और इस स्त्री को इसने चूमा है; आप भी यह खेल करके दिखा सकते हो?
उसने कहा, बिलकुल दिखा सकता हूं! लेकिन पहले इस सिंह के बच्चे को बाहर निकालो। यही खेल करके दिखाऊंगा। मगर जब तक सिंह भीतर है तब तक मैं भीतर नहीं जाऊंगा।
लोग उलटे काम करने में राजी होते हैं। इसके लिए कोई राजी नहीं हुआ। लोगों ने कहा, अरे बड़े मियां, हमें पहले ही पता था कि तुमसे क्या होगा। यह भी तुमने खूब शर्त लगाई! हो-हल्ला हो गया, हंसी-मजाक हो गई।
लोग उलटे में रस लेते हैं। उलटे से अहंकार की तृप्ति होती है। तुम किनको पूजते हो? कभी तुमने सोचा है अपने हृदय में कि तुम्हारी पूजा सिर्फ इसी कारण तो नहीं है कि वह आदमी सिर के बल खड़ा है? कुछ उलटा कर रहा है? कुछ अस्वाभाविक कर रहा है? कोई आदमी कांटों पर लेटा है, बस तुम्हारे मन में एकदम श्रद्धा के सुमन खिले! तुम पागल हो? कांटों पर लेट जाने से क्या होगा? भूखे मरने से क्या होगा? पहाड़ों पर गिरती बर्फ में नग्न बैठ जाने से क्या होगा? ये सब अभ्यास हैं और सरल अभ्यास हैं, कोई बहुत कठिन अभ्यास नहीं हैं।
तुम्हें अगर तैयारी करनी हो तो मैं तुम्हें सुगम उपाय बता सकता हूं। ये बहुत सरल अभ्यास हैं। तुम जरा अपने छोटे बच्चे को कहना कि सुई लेकर तू जरा मेरी पीठ पर जगह-जगह चुभा। और तुम चकित हो जाओगे, बच्चा अगर पचास जगह चुभाएगा तो तुम को सिर्फ पच्चीस जगह सुई चुभती मालूम पड़ेगी और पच्चीस जगह तुम्हें मालूम ही नहीं पड़ेगी। क्योंकि पीठ पर ऐसे बिंदु हैं, जो ब्लाइंड स्पॉट हैं, जिनमें कोई चुभन पता नहीं चलती। बस वह जो कांटों पर लेट रहा है, उसका कुल काम इतना है कि उसने अपनी पीठ पर कहां-कहां चुभन पता नहीं चलती वे बिंदु खोज लिए हैं। और कांटों की जो सेज बनाई है वह इस ढंग से बनाई गई है कि बस वे उन्हीं बिंदुओं पर कांटे पड़ते हैं जिन बिंदुओं पर चुभन का पता नहीं चलता।
तुम चाहो तो आज ही जाकर घर अपने बच्चे को कहना, जरा सुई लेकर तू मेरी पीठ पर चुभा। और तुम बहुत हैरान होओगे,बच्चा चुभा रहा है और तुम्हें पता नहीं चल रहा! पता ही नहीं चल रहा, क्योंकि उस स्थान पर कोई संवेदनशील तंतु नहीं है। तुम्हारी पूरी पीठ अनुभव नहीं करती; थोड़े से बिंदु हैं जो अनुभव करते हैं। बस उनको छोड़ दो, बाकी पर तुम भी लेट सकते हो कांटों पर।
तिब्बत में लामा अभ्यास करते हैं श्वास की एक खास प्रक्रिया का। एक खास ढंग से श्वास लेना गहरी और उसको खास समय तक भीतर रोकना; फिर उसे झटके से बाहर फेंक देना। फिर तीव्रता से श्वास लेना; पूरे फेफड़ों को भर लेना; फिर उसे भीतर रोकना। साधारणतः तुम जो श्वास लेते हो, इससे तुम्हें उतनी गरमी मिलती है जितनी तुम्हारे शरीर को जरूरी है। यह जो तिब्बती ढंग है श्वास लेने का--
Photo by Elijah Hiett on Unsplash
पूरे फेफड़े को भर देना। तुम आमतौर से जो श्वास लेते हो, उससे तुम्हारा एक तिहाई फेफड़ा श्वास से भरता है। छह हजार छिद्र अगर तुम्हारे फेफड़े में हैं तो केवल दो हजार छिद्रों तक श्वास पहुंचती है। चार हजार छिद्रों में कार्बन डाय आक्साइड इकट्ठी होती रहती है। वह जो तिब्बती ढंग है, उसमें पूरे छह हजार छिद्र आक्सीजन से भर जाते हैं। तीन गुनी मात्रा में आक्सीजन तुम्हारे भीतर हो जाती है। आक्सीजन अग्नि है। अगर उतनी आक्सीजन को तुम अपने भीतर रोक सको तो तुम्हारा खून उत्तप्त होने लगता है। उस उत्तप्त खून के कारण बरफ भी पड़ती रहे तो तुम्हारे शरीर से पसीना चूता रहेगा।
अब यह सिर्फ साधारण अभ्यास है। यह तुम कर सकते हो। इसमें कोई अड़चन नहीं है। मगर तिब्बती लामा को लोग इसीलिए सम्मान देते हैं, कि चमत्कार! इसको कहते हैं योग-बल!
यह न योग-बल है, न कोई चमत्कार है। और जितने चमत्कार तुम सोचते हो वे सब इसी तरह के हैं; उन सब की व्यवस्था है। मगर कोई आदमी उलटा कर रहा है और तुम्हारे मन में समादर पैदा होता है। इस कारण दुनिया में धर्म करीब-करीब सर्कस का खेल हो गया।
मैं एक ऐसा धर्म देखना चाहता हूं दुनिया में जो स्वाभाविक हो। उसको सम्मान दो जो बिलकुल स्वाभाविक है। उसको सम्मान दो जो बिलकुल प्राकृतिक है। तो अधिकतम लोग इस दुनिया में धार्मिक हो सकेंगे। और सबसे ज्यादा स्वाभाविक बात क्या है?संघर्ष से मुक्त हो जाना। क्योंकि जो संघर्ष से मुक्त हुआ, उसके तनाव गए, उसकी चिंताएं गईं। जो संघर्ष से मुक्त हुआ, वह शिथिल हुआ, विश्राम को उपलब्ध हुआ।
गंगा की धार में उलटे मत तैरो; गंगा की धार में साथ बहो। यह धार अपनी है। हम भी इस धार के हिस्से हैं। जीवन की इस गंगा में बहते चलो; यह गंगा सागर तक पहुंच ही जाएगी। यह जा ही रही है; तुम नाहक परेशान हो रहे हो।
उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र
Comments
Post a Comment