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Showing posts from November, 2017

ओशो की कुछ बेहतरीन किताबे

ओशो की कुछ बेहतरीन किताबे  १. मैं मृत्यु सिखाता हूँ।  ओशो कहते हैं – ‘मैं मृत्‍यु सिखाता हूं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं जीवन का विरोधी हूं।’ उनके लिए जीवन और मृत्‍यु के भय से त्रस्‍त लोगों ने भाग-भागकर जीवन के पलड़े में घुसना और उसी में सवार हो जाना अपना लक्ष्‍य बना लिया। नतीजा यह हुआ कि जीवन का पल फिर निसर्ग को उस संतुलन को ठीक करने के लिए आगे आना होता है इससे आपको मृत्‍यु और अधिक भयकारी लगने लगती है। मृत्‍यु रहस्‍यमय हो जाती है। मृत्‍यु के इसी रहस्‍य को यदि मनुष्‍य समझ ले तो जीवन सफल हो जाए। जीवन के मोह से चिपटना कम हो जाए तो अपराध कम हों। मृत्‍यु से बचने के लिए मनुष्‍य ने क्‍या-क्‍या अपराध किए है। इसे अगर जान लिया जाए तो जीवन और मृत्‍यु का पलड़ा बराबर लगने लगे। इसलिए जब ओशो कहते हैं कि ‘मैं मृत्‍यु सिखाता हूं’ तो लगता है जीवन का सच्‍चा दर्शन तो इस व्‍यक्ति ने पकड़ रखा है, उसी के नजदीक, उसी के विचारों के करीब आपको यह पुस्‍तक ले जाती है। जीवन को सहज, आनंद, मुक्ति और स्‍वच्‍छंदता के साथ जीना है तो इसके लिए आपको मृत्‍यु को जानकर उसके रहस्‍य को समझकर ही चलना ...

गंगा की धार में उलटे मत तैरो; गंगा की धार में साथ बहो।ओशो

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मैंने सुना है, एक सर्कस में ऐसा हुआ। सिंहों को नचाने वाला अचानक हार्ट-फेल से मर गया। भर दुपहरी, ज्यादा समय नहीं,शाम होने का वक्त आ रहा है। सर्कस का विज्ञापन हो चुका है। क्या करें अब, क्या न करें! मैनेजर ने गांव भर में डुंडी पिटवाई कि है कोई हिम्मतवर जो कुछ सिंहों के साथ खेल कर सके?और देख कर चकित हुआ। आई एक महिला--सुंदर महिला! उसने कहा, तू क्या कर सकती है? तू क्या कर पाएगी? उसने कहा, मैं वह चमत्कार कर सकती हूं जो अभी तक किसी ने नहीं किया होगा। मैं जाकर घुटने के बल खड़ी हो जाऊंगी और तुम देखना, सिंह आकर अगर मेरा चुंबन न ले! मैनेजर भी हैरान हुआ। चमत्कार उसने बहुत देखे थे; जिंदगी भर मैनेजरी की सर्कस की, एक से एक काम देखे थे, मगर यह काम उसने नहीं देखा था। उसने कहा, तू ठीक कह रही है?ठीक, तो जो तेरी मांग हो पूरी कर देंगे। आज का खेल अगर सफल हुआ तो तू जो तनख्वाह मांगेगी, कल से तेरी तनख्वाह तय हो जाएगी। और आज का तुझे जो चाहिए वह मांग ले। उसने कहा, पीछे ले लेंगे। लेने की बात पीछे हो जाएगी, पहले खेल हो जाए। गांव भर में खबर भी फैल गई। उस दिन बड़ी भीड़-भाड़ थी। क्योंकि लोगों ने देखा था हं...

अगर लॉटरी लग जाए तो आप क्या करेंगे। ओशो

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टालस्टाय की प्रसिद्ध कहानी है : एक आदमी, एक दरजी, हर महीने एक रुपया की लाटरी की टिकीट खरीदता था। ऐसा वह बीस साल से करता था। न कभी उसको लाटरी मिली, न उसने अब सोचना ही जारी रखा कि था कि कभी मिलेगी, मगर पुरानी आदत हो गई थी तो एक महिने में एक रूपए की खरीद लेता था। एक रूपए में बिगड़ता भी कुछ न था। मगर बीसवें साल में अनहोना घटा ! द्वार पर आकर एक रॉल्सरॉयस कार खड़ी हुई, इसमें बड़े - बड़े थैले नोटों से भरे हुए लोग उतरे और उन्होंने कहा कि भाई दरजी, अब क्या बैठे कर रहे हो, अब छोड़ो - छाडो़ सीना - पिरोना !... वह अपनी बटने टांक रहा था, शाम का वक्त।... फेंकोे -_फांको यह सब ! ये मिल गए तुमको दस लाख रूपए। लाटरी में जीत गए हो तुम। दरजी ने आव देखा न ताव... दस लाख रूपए मिल जाएं तो अब क्या करना ! उसने दुकान में ताला मारा और चाबी कुएं में फेंक दी ! कि अब करना ही क्या है !  सालभर में दस लाख रूपए हवा हो गए. चीजें जैसी आती हैं वैसे ही जाती हैं, यह भी खयाल रखना। अब दस लाख रूपए आए ऐसे ही उड़ते हूए, तो ऐसा ही चले गए। क्योंकि सालभर वह वह जिया ऐसे जैसे कोई शहंशाह जीए. खरीदी बड़ी - बड़ी गाड़ियां, बड...

मैं तुम्हें जीवन देना चाहता हूँ।

मेरे पास आये हो तो मैं तुम्हें परमात्मा नहीं देना चाहता, मैं तुम्हें जीवन देना चाहता हूँ। और जिसके पास भी जीवन हो, उसे परमात्मा मिल जाता है। जीवन परमात्मा का पहला अनुभव हैं। और चूँकि मैं तुम्हें जीवन देना चाहता हूँ, इसलिए तुम्हैं सिकोड़ना नहीं चाहता, तुम्हें फैलाना चाहता हूँ। तुम्हें मर्यादाओं में बाँध नहीं देना चाहता; तुम्हें अनुशासन के नाम पर गुलाम नहीं बनाना चाहता हूँ. तुम्हें सब तरह की स्वतंत्रता देना चाहता हूँ ताकि तुम फैलो, विस्तीर्ण होओ। तुम्हें बोध देना चाहता हूँ, आचरण नहीं। तुम्हें अंतश्चेतना देना चाहता दूँ, अंतःकरण नहीं। तुम्हें एक समझ देना चाहता हूँ जीने की, जीने को हजार रंगों में जीने की; तुम्हें जिंदगी एक इंद्रधनुष कैसे बन जाए इसकी कला देना चाहता हूँ; तुम कैसे नाच सको और तुम्हारे ओंठों पर बाँसुरी कैसे आ जाए, इसके इशारे देना चाहता दूँ। और मेरी समझ और मेरा जानना ऐसा है, जो आदमी गीत गाना जान ले, उसके मुँह से गालियां निकलनी बंद हो जाती हैं। मैं तुम्हें गालियां छोड़ने पर जोर देना ही नहीं चाहता, गीत गाना सिखाना चाहता हूँ। यह विधायकता है।...